शुक्रवार, 29 मार्च 2024

विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ की महिमा!!


 : विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ की महिमा!!!!!


जिन पापों की शुद्धि के लिए कोई उपाय नहीं, उनके लिए भगवान के सहस्त्रनामों का पाठ सर्वोत्तम उपाय माना जाता है । सहस्त्रनामों के पाठ से d स्वाध्याय का व मंत्र-जप करने का पुण्य प्राप्त हो जाता है; साथ ही मनुष्य के सभी दु:ख-दारिद्रय, ऋण आदि दूर हो जाते हैं।


सहस्त्रनाम का पाठ रोग हरने वाला, राज्य-सुख देने वाला, पुत्र-पौत्र देने वाला, आयुप्रद और सभी मंगलों को देने वाला माना जाता है । सहस्त्रनाम के एक-एक अक्षर की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता है।


वैसे तो सभी देवताओं के सहस्त्रनाम का अति महत्व है; किन्तु सात्विकता की दृष्टि से 'विष्णु सहस्त्रनाम' के पाठ की विशेष महिमा है; क्योंकि भगवान विष्णु सत् गुण के अधिष्ठातृ देवता और संसार का पालन करने वाले हैं ।


वामन पुराण में कहा गया है-


नारायणो नाम नरो नराणां

प्रसिद्धचौर: कथित: पृथिव्याम् ।

अनेकजन्मार्जित पापसंचयं

हरत्यशेषं श्रुतमात्र एव ।।


अर्थात्-पृथ्वी में नारायण नामरूपी नर प्रसिद्ध 'चोर' कहा जाता है; क्योंकि वह कानों में प्रवेश करते ही मनुष्यों के अनेक जन्मार्जित पापों के सारे संचय को एकदम चुरा लेता है ।'


विष्णु सहस्त्रनाम के चार स्वरूप उपलब्ध हैं-


(१) महाभारत अनुशासन पर्व के अध्याय १४९ में वर्णित सहस्त्रनाम-यह भीष्म पितामह द्वारा धर्मराज युधिष्ठिर को बताया गया हैं ।


(२) पद्म पुराण (६।७२) में-यह सहस्त्रनाम भगवान शिव ने पार्वतीजी से कहा है और सबसे पुराना है ।


(३) स्कन्द पुराण के (५।१।७४) में-यह सहस्त्रनाम ब्रह्माजी ने देवताओं को सुनाया था ।


(४) गरुड़ पुराण अध्याय १५ में-यह भगवान श्रीहरि ने भगवान रुद्र को बताया था ।


महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्मप्रोक्त 'विष्णु सहस्त्रनाम' विशेष प्रसिद्ध है । यह द्वापर के अंत का है ।


विष्णु सहस्त्रनाम की महिमा बताते हुए श्रीरामचन्द्र डोंगरेजी महाराज लिखते हैं-भीष्म पितामह जब बाणों की शय्या पर थे तो उन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर को धर्म के विभिन्न रहस्यों पर उपदेश दिया । युधिष्ठिर ने पितामह भीष्म से प्रश्न किया-'परम धर्म क्या है और किसका जप करने से मनुष्य जन्म-मरण रूपी संसार-बंधन से मुक्त हो जाता है ?'


इसका उत्तर देते हुए भीष्म पितामह कहते हैं-'भगवान नारायण का दर्शन करते हुए शांति से विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना ही मनुष्य का परम धर्म है । मेरा नियम है कि विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ किए बिना मैंने कभी पानी भी नहीं पिया है ।'


एक बार युधिष्ठिर ने देखा कि भगवान श्रीकृष्ण पुलकित शरीर होकर ध्यान में बैठे हैं । ध्यान पूरा होने पर युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा-'प्रभु ! सब लोग आपका ध्यान करते हैं, आप किसका ध्यान कर रहे थे ?'


भगवान श्रीकृष्ण ने कहा-'मेरा भक्त शरशय्या पर पड़ा मेरा ध्यान कर रहा है और मैं अपने उस प्रिय भक्त का ध्यान कर रहा था, मैं उनके ास चला गया था ।'


उसी विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ का ही चमत्कार था कि द्वारिकानाथ श्रीकृष्ण भीष्म पितामह को सद्गति देने आए । भीष्म पितामह ने श्रीकृष्ण की बहुत सुन्दर स्तुति की; जिससे उन्हें अपने चारों ओर-भीतर नारायण, बाहर नारायण, दायें नारायण, बायें नारायण, ऊपर नारायण, नीचे नारायण दिखाई दे रहे थे । नारायण के सिवाय उन्हें और कुछ नहीं दिख रहा था । अतिशय भक्ति में भक्त और भगवान एक हो जाते हैं । उनके हृदय में भूत, भविष्य और वर्तमान का समस्त ज्ञान प्रकट हो गया । उन्होंने बड़े उत्साह से युधिष्ठिर को धर्म के समस्त अंगों का उपदेश किया । सर्वत्र नारायण का दर्शन करते हुए सैंकड़ों ऋषि-मुनियों के बीच शरशय्या पर पड़े भीष्म पितामह उत्तरायण में भगवान में लीन हो गए और उन्होंने वैष्णव सालोक्य मुक्ति प्राप्त की । ऐसी सद्गति किसी को नहीं मिली ।


विष्णु सहस्त्रनाम के नित्य पाठ की महिमा


▪️ विष्णु सहस्त्रनाम के नित्य पाठ करने की महिमा के बारे में कहा गया है कि यह 'मेटत कठिन कुअंक भाल के ।' प्रभु के नाम में ऐसी शक्ति है कि विधाता ने यदि किसी के भाग्य में यह लिखा है कि कुछ समय बाद उसको बहुत बीमारी आएगी; किन्तु ऐसा व्यक्ति अगर विष्णु सहस्त्रनाम के बारह हजार पाठ उचित रीति से करता है तो उसकी जन्म-कुण्डली का वह स्थान शुद्ध हो जाता है । उसे महारोग नहीं होता है । जो रोग उसे छह मास भोगना था, वह सब एकाध दिन में भोग कर उसके प्रारब्ध का विनाश हो जाएगा । इसीलिए सभी वैष्णवों को प्रात:काल भोजन से पहले या रात्रि में सोने से पहले विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करना चाहिए । जीवन में सुख-दु:ख का कैसा भी प्रसंग आ जाए, मनुष्य को अपने इस नियम को नहीं छोड़ना चाहिए ।


▪️ विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने वाला मनुष्य कभी पराभव, दुर्गति को प्राप्त नहीं होता है क्योंकि-


लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजय: ।

येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दन: ।।


अर्थात्-जिसके हृदय में भगवान विष्णु का ध्यान और मुख में उनके नाम विराजमान हैं, उन्हीं को लाभ होता है, उन्हीं की विजय होती है; उनकी पराजय कैसे हो सकती है ?


▪️ जो मनुष्य विष्णु सहस्त्रनाम का नित्य पाठ करता है या सुनता है, उसके साथ इस लोक या परलोक में कहीं पर भी कुछ अशुभ नहीं होता है । वह समस्त संकटों से पार हो जाता है ।


▪️ रोगातुर मनुष्य रोग से छूट जाता है, बन्धन में पड़ा हुआ पुरुष बन्धन से छूट जाता है, भयभीत का भय दूर हो जाता है, आपत्ति में पड़ा हुआ मनुष्य आपत्ति से छूट जाता है ।


▪️ मनुष्य को जन्म-मृत्यु, जरा, व्याधि का भय नहीं रहता है । मनुष्य आरोग्यवान, कान्तिमान, बलवान, रूपवान और सर्वगुणसंपन्न हो जाता है ।


▪️ विष्णु सहस्त्रनाम का नित्य शुद्ध मन से पाठ करने वाले व्यक्ति के क्रोध, लोभ, ईर्ष्या आदि दुर्गुण नष्ट हो जाते हैं तथा वह लक्ष्मी, कीर्ति, क्षमा, धैर्य, स्मृति और कीर्ति आदि सद्गुणों को प्राप्त करता है ।


▪️ मनुष्य जिस वस्तु-धर्म, अर्थ, सुख या मोक्ष जिसकी भी इच्छा करता है, उसे प्राप्त कर लेता है ।


▪️ जो मनुष्य सूर्योदय के समय इसका पाठ करता है, उसके बल, आयु और लक्ष्मी प्रतिदिन बढ़ते जाते हैं ।


▪️ विष्णु सहस्त्रनाम के एक-एक नाम का उच्चारण करते हुए जो मनुष्य भगवान को तुलसी दल अर्पण करता है, उसे करोड़ों यज्ञों के अनुष्ठान की तुलना में अधिक फल प्राप्त होता है ।


भगवान विष्णु ही अनेक रूप धारण करके त्रिलोकी में व्याप्त होकर सबको भोग रहे हैं; इसलिए जो मनुष्य श्रेय और सुख पाना चाहता है उसको उनके नामों का नित्य जप-पाठ अवश्य करना चाहिए । विष्णु सहस्त्रनाम का नित्य पाठ भगवान में भक्ति को बढ़ाने वाला है । विष्णुलोक तक पहुंचने के लिए यह अद्वितीय सीढ़ी है ।


भगवान शिव पार्वतीजी से कहते हैं-'विष्णुलोक से बढ़कर कोई धाम नहीं है, श्रीविष्णु से बढ़कर कोई तपस्या नहीं है, श्रीविष्णु से बढ़कर कोई धर्म नहीं है और श्रीविष्णु से भिन्न कोई मन्त्र नहीं है । श्रीविष्णु से भिन्न कोई सत्य नहीं है, श्रीविष्णु से बढ़कर कोई जप नहीं है, श्रीविष्णु से बढ़कर कोई ध्यान नहीं है तथा श्रीविष्णु से श्रेष्ठ कोई गति नहीं है । जिस मनुष्य की भगवान श्रीविष्णु के चरणों में भक्ति है, उसे अनेक मंत्रों के जप, शास्त्रों के स्वाध्याय और सहस्त्रों वाजपेय यज्ञों का अनुष्ठान करने की क्या आवश्यकता है ? मैं सत्य कहता हूँ कि भगवान विष्णु ही सर्वतीर्थमय हैं, वे ही सर्वशास्त्रमय हैं तथा वे ही सर्वयज्ञमय हैं ।'


विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ में उतावली नहीं करनी चाहिए। उतावली करने से पाठकर्ता की आयु और धन का नाश हो जाता है ।।

    ❗जय महादेव❗

 ⭕प्रश्न नहीं स्वाध्याय करें‼️

रविवार, 7 जनवरी 2024

राम मंदिर के बिषय मैं ताँतपुर आसन्न क्षेत्र के ब्राह्मणों का मत


 ब्राह्मण समाज की वैठक पीएल रिसोर्ट तांतपुर स्टेशन पर हुई , जिसमें ताँतपुर बसई  एवं भारा न्याय पंचायत के सभी ग्रामों के ब्राह्मण उपस्थित रहे ,सर्व प्रथम महर्षि परशुराम भगवान की आरती हुई तत्पश्चात अयोध्या से पूजित अक्षत एवं चित्रक पत्रक वितरण किए,    22जनवरी को श्री रामलला की स्थापना होगी आप सभी  मंदिरों की सफाई अभियान से जुड़े एवं पूजा पाठ कीर्तन सायंकाल दीपावली की तरह ही दीपक जलाकर हर्षोल्लास के साथ। उत्सव मनायें आयोजन अपने  गांव मैं करें , यह समय हमारे लिए विषेश महत्वपूर्ण है राम राज्य स्थापित करने में ब्राह्मणों को अपने तपोवल पर ध्यान देना होगा सभी अपने नित्य कर्म मैं भारत विश्व गुरु वने उसके लिए नित्य पूजा पाठ कर  सहयोग करें । इस बैठक मैं  वक्ता पं। मुकेश शास्त्री जी , रमेशचंद्र प्रधान जी,श आशाराम जी , पप्पू पंडित जी,रामबीर शर्मा, हरीनारायण, बृदावन,रमाकांत, रामनिवास, हरिप्रसाद, स्वरूप, कृष्णकांत,रामप्रसाद, आदि

रविवार, 24 दिसंबर 2023

भगवान परशुरामजी से सीखें 4बातेंमाता-पिता का सम्मान दान की भावना न्याय सर्वोपरि विवेकपूर्ण कार्य

 भगवान परशुराम ने हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान किया और उन्हें भगवान के समान ही माना। माता-पिता के हर आदेश का पालन भगवान परशुराम ने किया। हमें भी जीवन में हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान और उनकी हर आज्ञा का पालन करना चाहिए। जो व्यक्ति माता-पिता का सम्मान करते हैं, भगवान भी उनसे प्रसन्न रहते हैं।धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने अश्वमेघ यज्ञ कर पूरी दुनिया को जीत लिया था, लेकिन उन्होंने सबकुछ दान कर दिया। हमें भगवान परशुराम से दान करना सीखना चाहिए। अपनी क्षमता के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार भी दान करने का बहुत अधिक महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि दान करने से उसका कई गुना फल मिलता है।भगवान परशुराम ने न्याय करने के लिए सहस्त्रार्जुन और उसके वंश का नाश कर दिया था। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का मानना था कि न्याय करना बहुत जरूरी है। इसलिए उन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं में इस बात का वर्णन भी है कि भगवान परशुराम सहस्त्रार्जुन और उसके वंश का नाश नहीं करना चाहते थे, परंतु उन्होंने न्याय के लिए ऐसा किया। भगवान परशुराम के लिए न्याय सबसे ऊपर था। हमें भी जीवन में न्याय करना चाहिए।भगवान परशुराम ने गुस्से में आकर कभी भी अपना विवेक नहीं खोया। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का स्वभाव गुस्से वाला था, परंतु उन्होंने हर कार्य को संयम से ही किया। हमें भी जीवन में सदैव विवेक और संयम बना के रखना चाहिए।




ब्राह्मण जगत गुरु है सभी को उचित शिक्षा देना उसका फर्ज हैं

 दिनांक 24/12/2023को सभी गांवों के ब्राह्मणों ने समाज के उत्थान के लिए महर्षि परशुराम भगवान की तस्वीर का पूजन कर पी.एल.रिसोर्ट ताँतपुर स्टेशन पर दूसरी बैठक की सभी ने अपने विचार संगठन को मजवूत बनाने के लिए रखे। एवं कुरीतियों को खत्म करने और अपने ब्राह्मतेज को कैसे सरंक्षित कर समाज के कल्याण मैं योगदान दें आज हमारे समाज रास्ता भटक रहा हैं ब्राह्मण समाज जगत गुरु हैं सभी समाज सम्मान करते हैं अन्य समाज के उत्थान के लिए उचित शिक्षा देना ब्राह्मण का कर्तव्य है  आगामी बैठक 7/1/2024रविवार को अपरान्ह 2ः00की रखी है एवं भारा, कठूमरी,बाजीदपुर। चाचोंद , गुगामद,नयागांव ,घसकटा, घडी़ कुकरसों, होलीपुरा, ताँतपुर बसईं सोनीखेड़ा कोडरी, सिगरावली पंचायतों के सभी गांव से ब्राह्मणों को  आगामी बैठक प्रत्येक घर से आमत्रित किया है सौजन्य से  - महर्षि परशुराम ब्राह्मण समाज

शनिवार, 23 दिसंबर 2023

ब्राह्मण समाज की वड़ी वैठक 24/12/2023को


 ताँतपुर स्टेशन पीएल रिसोर्ट मैं ब्राह्मण समाज की  आगामी बैठक 24/12/2023रविवार को अपरान्ह 2ः00की रखी है भारा एवं बसई ताँतपुर के सभी गांव से ब्राह्मणों के प्रत्येक घर से आने के लिये आमत्रित किया है आप सभी की उपस्थिति अनिवार्य है। सभी के विचार संघटन को दिशानिर्देश के साथ पदाधिकारियों का चयन भी आप सभी की सहमति से होगा,  आप सभी एक दूसरे को यह सूचना कर दो और आप सभी अधिक से अधिक उपस्थित होकर कार्यक्रम को सफल बनायें ।सौजन्य से  - महर्षि परशुराम ब्राह्मण समाज

रविवार, 17 दिसंबर 2023

ताँतपुर पीएल रिसोर्ट मैं ब्राह्मण समाज की बैठक


 आज दिनांक 17/12/2023को ताँतपुर बसई एवं भारा न्याय पंचायत के सभी गांवों के ब्राह्मणों ने समाज के उत्थान के लिए महर्षि परशुराम भगवान की तस्वीर का पूजन कर एक  बैठक की ,सभी ने अपने विचार संगठन को मजवूत बनाने के लिए रखे । आगामी बैठक 24/12/2023रविवार को अपरान्ह 2ः00की रखी है भारा एवं बसई ताँतपुर के सभी गांव से ब्राह्मणों प्रत्येक घर से आने के लिये आमत्रित किया है सौजन्य से  - महर्षि परशुराम ब्राह्मण समाज

 स्थान , पी एल रिसोर्ट ताँतपुर स्टेशन ताँतपुर आगरा

बुधवार, 13 दिसंबर 2023

राजयोग कैसे वनता है जन्म कुंडली मैं।। जानते है पं . मुकेश शास्त्री जी से




• यदि किसी कुंडली में एक उच्च ग्रह के साथ एक नीच ग्रह रखा जाता है, तो कुंडली में नीचभंग राजयोग बनता है। उदाहरण के लिए, यदि शुक्र और बुध को मीन राशि में रखा जाता है, जहां बुध दुर्बल है और शुक्र उच्च है तो नीचभंग राजयोग बनता है।


• यदि किसी कुंडली में कोई ग्रह अपनी नीच राशि में बैठा हो और उस राशि का स्वामी लग्न भाव या चंद्रमा से केंद्र स्थान में हो तो कुंडली में नीचभंग राजयोग बनता है। उदाहरण के तौर पर बृहस्पति की नीच राशि मकर है और मकर का स्वामी शनि यदि चंद्रमा से केंद्र स्थान में हो तो नीचभंग राजयोग बनता है।


• यदि किसी कुंडली में कोई ग्रह अपनी नीच राशि में हो और उस राशि में उच्च होने वाला ग्रह चंद्रमा से केंद्र स्थान में हो तो नीचभंग राजयोग बनता है। उदाहरण के लिए शनि की नीच राशि मेष है और सूर्य की उच्च राशि मेष है। सूर्य चंद्रमा से केंद्र स्थान में हो तो इस राजयोग का निर्माण  होता है 


• यदि किसी जातक की कुंडली में सूर्य की वजह से नीचभंग राजयोग बनता है तो उसे राज्य की तरफ से लाभ प्राप्त होता है। जातक अपनी नीतियों को वरिष्ठ लोगों के सहयोगों से सफल बनाने में सक्षम होता है।


• यदि किसी कुंडली में बुध की वजह से नीचभंग राजयोग बनता है तो जातक की बुद्धि अनैतिक कार्यों को करने में लग सकती है। परंतु उसके मित्रगण उसे सही दिशा में वापस ला सकते हैं।


• यदि किसी कुंडली में चंद्रमा की वजह से नीचभंग राजयोग बनता है तो जातक काफी भावुक और जल्दी से विश्वास करने वाला बन जाता है, इसकी वजह से उसे विश्वासघात मिल सकता है।


• यदि किसी कुंडली में मंगल की वजह से नीचभंग राजयोग बनता है तो जातक अधिक उग्र हो सकता है और जल्दबाजी में गलत काम भी कर सकता है। हालांकि जातक को सरकारी नौकरी मिल सकती है और प्रॉपर्टी का लाभ भी मिल सकता है।


• यदि किसी कुंडली में शुक्र की वजह से नीचभंग

राजयोग बनता है तो जातक को प्रसिद्धि और पैसा

मिल सकता है। जातक के अंदर अहंकार आ जाता

है और वह दिखावा करने लगता है।


• यदि किसी कुंडली में गुरु की वजह से नीचभंग

राजयोग बनता है तो जातक की बुद्धि, ज्ञान में वृद्धि

होती है और वह कार्यकुशल हो जाता है।


• यदि किसी कुंडली में शनि की वजह से नीचभंग राजयोग बनता है तो जातक कार्यकुशल और व्यवाहारिक हो जाता है।

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विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ की महिमा!!

 : विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ की महिमा!!!!! जिन पापों की शुद्धि के लिए कोई उपाय नहीं, उनके लिए भगवान के सहस्त्रनामों का पाठ सर्वोत्तम उपाय मान...